जब बाबा साहेब  धर्मगुरु करपात्री महाराज ने बाबा साहेब को बहस करने की चुनौती दे डाली। 

जब बाबा साहेब  धर्मगुरु करपात्री महाराज ने बाबा साहेब को बहस करने की चुनौती दे डाली। 


उस महाराज ने कहा डॉ अम्बेडकर एक अछूत है,वे क्या जानते हैं हमारे धर्म के बारे मे, 
हमारे ग्रन्थ और शास्त्रों के बारे में,  उन्हें कहाँ संस्कृत और संस्कृति का ज्ञान है? 
यदि उन्होंने हमारी संस्कृति से खिलवाड़ किया तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे। 
करपात्री महाराज ने बाबा साहेब को इस पर बहस करने हेतु पत्र लिखा और निमंत्रण भी भेज दिया।


बाबा साहेब बहुत शांत और शालीन स्वभाव के व्यक्ति थे,
उन्होंने आदर सहित करपात्री महाराज को पत्र लिखकर उनका निमंत्रण स्वीकार किया और कहा कि हिंदी इंग्लिश संस्कृत मराठी या अन्य किसी भी भाषा मे,मैं आपसे शास्त्रार्थ करने को तैयार हूं। 
आपके मन मे यदि कोई प्रश्न है तो आप अपने समयानुसार आकर अपनी जिज्ञासा पूरी कर सकते हैं।


यह पढ़ते ही करपात्री महाराज आग बबूला हो गए,और वापस बाबा साहेब को पत्र लिखा कि डॉ अम्बेडकर आप शायद भूल रहे हैं  कि आप एक साधू, सन्यासी को अपने स्थान पर बुला रहे हैं आपको यहां आकर बात करनी चाहिए 
न कि एक साधू आपके पास आकर बात करें।बाबा साहेब ने उसी रूप में जवाब देते हुए कहा,


मैं साधू, सन्तों का सम्मान करता हूँ।  उनके तप और त्याग का आदर करता हूँ 
लेकिन फिलहाल जिनसे मैं पत्राचार कर रहा हूँ वे साधु कहाँ रहे हैं? 
वे राजनेता हो गए हैं वरना एक बिल से किसी साधू को क्या लेना देना हो सकता है? 
एक ऐसा बिल जिसमे महिलाओं को भी सम्पत्ति रखने का अधिकार मिले, तलाक और विधवा विवाह का अधिकार मिले? 
इसमे मुझे तो कोई बुराई नजर नही आती,
इसलिए मेरी नजर में आप राजनीति कर रहे हैं और राजनीतिक लिहाज से आप शायद भूल रहे हैं 
कि मैं वर्तमान समय मे भारत का कानून मंत्री हूँ और एक मंत्री के रूप में,
मैं ऐसी किसी जगह नही जा सकता हूँ जहां जनता का हित न हो या लोकतंत्र का अपमान हो।


यह पढ़कर करपात्री महाराज अचंभित हुए और बाबा साहेब को पुनः एक और पत्र लिखा,
जिसमे वे बाबा साहेब से मिलने को राजी हुए लेकिन कभी मिलने नही आये। 


ऐसे थे बाबा साहेब और 
एक आज के नेता हैं जिन्हें हमको नेता कहते हुए भी शर्मिंदगी महसूस होती है। 
जब तक धर्म और राजनीति दोनों को अलग अलग न किया जाएगा,
तबतक इस देश का कुछ भला नही हो सकता है यह अटल सत्य है।